!! पसायदान !!
आता विश्वात्मकें देवे | येणें वाग्यज्ञें तोषावंे |
तोषोनि मज द्यावें | पसायदान हें ||1||
जे खळांची व्यंकटी सांडो | तयां सत्कर्मी रती वाढो |
भूतां परस्परे जडो | मैत्र जीवाचे ||2||
दुरितांचे तिमिर जावो | विश्व स्वधर्मसूर्यें पाहो |
जो जें वांछील तो तें लाहो | प्राणीजात ||3||
वर्षत सकळ मंगळी | ईश्वरनिष्ठांची मांदियाळी ||
अनवरत भूमंडळीं | भेटो तयां भूतां || 4 ||
चलां कल्पतरूंचे आरव | चेतना चिंतामणीचे गाव !
बोलते जे अर्णव | पीयूषांचे ||5||
चंद्रमे जे अलांछन | मार्तंड जे तापहीन |
ते सर्वांही सदा सज्जन | सोयरे होतु ||6||
किंबहुना सर्वसुखी | पूर्ण होवोनि तिहीं लोकीं |
भजिजो आदि पुरूखीं | अखंडित || 7 ||
आणि ग्रंथोपजीविये | विशेंषी लोकीं इये |
दृष्टादृष्टविजये | होवावे जी || 8 ||
येथ म्हणे श्रीविश्वेश्वरावो | हा होईल दान पसावो |
येणें वरें ज्ञानदेवो | सुखिया झाला ||9||
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