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!!रूक्मिणी आष्टक !!
माय रूक्मिणी माय रूक्मिणी माय रूक्मिणी धाव गं |
माय रूक्मिंणी माय रूक्मिणी पाव गं |
भीष्मकी चंद्रानना, तुज सकल सुरगुरू वंदिती |
पूजिती, ब्रह्मादिदेवहि परम मुनिवर पावती ||
शोभते भिवरातिरी सुखदायिनी दुखहारिणी ||
वंदितो गुणशालिनी, करूणामयी श्रीरूक्मिणी ||1||
कंकणे हाति विराजत नूपरे पदी वाजती |
कंजनेत्री मेखला कटि नीलकुंतल शोभती | |
कुंडलानी विलसते मुख शत्रुसैनिकमोहिनी |
वंदितो वरदायिनी भवतारिणी श्रीरूक्मिणी ||2||
विमल किर्ती एकूनि मन कृष्णचरणी लोभले |
अर्पुनी कृष्णासी कन्या उध्दरू कुळ आपले ||
रूक्मयाने योजिली शिशुपालराजाकारणी |
वंदितो मी पद्मनयना पद्मजा श्रीरूक्मिणी ||3||
सात श्लोकी पत्र ते मग भीमकी ने लेखिले |
गुंफुनि मन त्यात निज ते कृष्णनगरा धाडिले ||
येई धावत भक्ततारक नेतसे मनहारिणी |
वंदितो मी कृष्णरमणी विश्वमोहिनी रूक्मिणी ||4||
तोलण्या कणकासवे कृष्णास भामा सिद्ध ती |
रूक्म, रत्ने, भूषणे त्या टाकिली नच तोलती ||
भीमकी तुळस पडता तोल झाला त्या क्षणी |
वंदितो मी भक्तिरूपा कृष्णकांता रूक्मिणी ||5||
राधिकेशी पाहिले जव कृष्ण अंकी बैसली |
क्रोध आला भीमकीसी कृष्णनगरी त्यागिली ||
येउनी भिवरातीरी तप घोर आचरी मानिनी |
वंदितो मी भक्तीमूर्ती कृष्णकीर्ति रूक्मिणी ||6||
एकनाथे वर्णिली तव हरणवार्ता रम्य ती |
श्रीधरांनी गायिली ती सामराही वानिती ||
संत, पंत नि तंत कविहि रंगले तव वर्णनी |
वंदितो मी आदिशक्ती कृष्णभक्ती रूक्मिणी ||7||
ब्रह्म तूचही श्रेय तूचहि मंगला |
योगि, ज्ञानी, भक्त, कर्मी इच्छिती तुजला मनी |
वंदितो मी द्वैतहारिणि निर्गुणा श्रीरूक्मिणी ||8||