!
! पांडुरंगाष्टक ! !
महायोगपीठे
तटे भीमरथ्या: | वरं पुंडरीकाय दातुं मुनीन्दै: |
समागत्य
तिष्ठंन्तमानन्दकन्दं | परब्रह्मलिंगं भजे पांडुरंगम् ||1||
तडिद्वाससं
नीलमेघावभासं | रमामंदिर सुंदर चित्प्रकाशम् |
वरं त्विष्टिकायां
समन्यस्तपादं | परब्रह्मलिंगं भजे पांडुरंगम् ||2||
प्रमाण भवाब्धेरिंदं
मामकांनां | नितंब:कराभ्यां धृतो येन तस्मात् |
विधातुर्वसत्यै धृतो
नाभिकोष: | परब्रह्मलिंगं भजे पांडुरंगम् ||3||
स्फुरत्कौस्तुभालंकृत कंठदेशे | श्रिया जुष्टकेयूरकं श्रीनिवासम् |
शिवं शांतमीड्यं वर
लोकपालं | परब्रह्मलिंगं भजे पांडुरंगम् ||4||
शरच्चंद्रबिंबानन
चारूहासं | लसत्कुंडलाक्रांन्तगंडस्थलांगम् |
जपारागबिंबाधरं
कंजनेत्रं | परब्रह्मलिंगं भजे पांडुरंगम् ||5||
किरींटोज्ज्वलत्सर्वदिक्प्रान्तभागं | सुरैरर्चित दिव्यरत्नैरनध्यै: |
त्रिभंगाकृतिं
बर्हमाल्यावंतसम् | परब्रह्मलिंगं भजे पांडुरंगम् ||6||
विभंु वेणुनाद चरंतं
दुरंत | स्वयं लीलया गोपवेषं दधानम् |
गवा वृदकानन्दनं
चारूहासं | परब्रह्मलिंगं भजे पांडुरंगम् ||7||
अजं
रूक्मिणिप्राणसंजीवनं तं | परं धाम कैवल्यमेकं तुरीयम् |
प्रसन्नं
प्रपन्नार्तिहं देवदेवं | परब्रह्मलिंगं भजे पांडुरंगम् ||8||
स्तवं पांडुरंगस्य
वै पुण्यदं ये | पठन्त्येकचित्तेन भक्त्या च नित्यम्|
भवांभोनिधिं तेSपि
तीतर्वाSन्तकाले । हरेरलयं शाश्वतं प्राप्नुवन्ति ॥९॥
॥इति
श्रीमतशंकराचार्य विरचितं श्रीपांडुरंगाष्टकं संपूर्णम् ॥
|